सिमट आता है हर इक टुकङा खामोश धङकनो में,
मेरा दर्द तो अब आँखो से बयाँ नही होता ।।
सोचता हूँ कह दूँ जो शिकवे हैं जिदगी से,
पर गैरो से अब हमें कोई गिंला नही होता ।।
No complaints. No reasons to complaint.
सिमट आता है हर इक टुकङा खामोश धङकनो में,
मेरा दर्द तो अब आँखो से बयाँ नही होता ।।
सोचता हूँ कह दूँ जो शिकवे हैं जिदगी से,
पर गैरो से अब हमें कोई गिंला नही होता ।।
No complaints. No reasons to complaint.
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mr.nitish.kumar@gmail.com